जब आप हिन्दू धर्म के अनुसार शादी करते है तो शादी से पहले आपके घर वाले आपकी कुंडली को पंडित जी को जरूर दिखाते है कभी कभी क्या होता है कि किसी के कुंडली में कोई दोष निकल जाता है और यदि किसी के कुंडली में सूर्य देव का प्रभाव का दोष निकालता है तो पंडित जी उनको आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने को कहते है जिससे उनकी कुंडली में सूर्य ग्रह का प्रभाव मजबूत हो।
सूर्य ग्रह को ग्रहों का राज कहा जाता है और यह माना जाता है कि सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से आपके अंदर सूर्य के समान यश और तेज कि प्राप्ति होती है और आप जीवन में सफलताओं की ऊंचाइयों के छोटे है आपके जीवन में खुशहाली आती है।
Aditya Hridaya Stotra सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए बनाया गया है यह माना जाता है कि आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से आपकी कुणाल में सूर्य ग्रह का प्रभाव मजबूत होता है जो कि काफी अच्छा माना जाता है यहां पर हम आपको Aditya Hridaya Stotra in Hindi के बारे में बताएंगे ताकि आप इसका हिंदी में मतलब भी जान पाएं।
Aaditya Hridaya Stotra in Hindi
जब भगवान राम ने रावण का वध कर रावण पर विजय पाया था तब ऋषि अगस्त्य ने राम को आदित्य हृदय स्तोत्र को बताया और सिखाया था इस स्तोत्र का पाठ करने से आपके ऊपर सूर्य देव की कृपा हमेशा बनी रहती है जिसके कारण आपके अंदर साहस और आत्मविश्वास बना रहता आई जिससे आपको हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होता है।
परिचय (श्लोक 1–3)
1. ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥
अर्थ : जब श्रीराम युद्ध में थके हुए और चिंतित मुद्रा में खड़े थे, और वह रावण को सामने खड़ा देखकर तैयारी में था।
2. दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥
अर्थ : तभी देवता सब वहाँ युद्ध क्षेत्र को देखने आए, और उसी समय महर्षि अगस्त्य वहां उपस्थित हुए और श्रीराम से कहा —
3. राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥
अर्थ : हे राम! हे महाबाहु! सुनो यह वो सनातन गुप्त ज्ञान, जिससे तुम सब शत्रुओं पर युद्ध में विजय पाओगे।
स्तोत्र की महिमा (श्लोक 4–7)
4. आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपेन्नित्यं अक्षयं परमं शिवम्॥
अर्थ : आदित्य हृदय स्तोत्र अत्यंत पवित्र है, यह समस्त शत्रुओं का विनाश करता है और यदि इसका नियमित जाप किया जाए तो अक्षय, परम शुभ फल देता है।
5. सर्वमङ्गलं माङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनं आयुरारोग्यमैश्वर्यम्॥
अर्थ : यह स्तोत्र सम्पूर्ण मंगल का स्वरूप है, सभी पापों को विनाश करता है, चिंता और शोक को शांत करता है, तथा आयु, स्वास्थ्य और ऐश्वर्य प्रदान करता है।
6. नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोगनिवारिणे।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि मे जगतां पते॥
अर्थ : हे शांत स्वरूप सूर्य देव! हे समस्त रोगों के नाशक! हे जगत के स्वामी! मुझे दीर्घायु, स्वास्थ्य और ऐश्वर्य प्रदान करें।
7. आदित्यं क्षीणपाप्मानं ध्यात्वा हृदि न संस्थितम्।
जपेत्सप्तशतीं नाम्नां अष्टोत्तरशतं प्रियम्॥
अर्थ : जो अपनी हृदय में आदित्य देव का ध्यान करता है, पापरहित मन से उनका जाप सात सौ या कम से कम 108 बार करता है, वह उन्हें अत्यंत प्रिय होता है।
सूर्य देव की महिमा (श्लोक 8–17)
8. जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥
अर्थ : तुम उस दिवाकर सूर्य को प्रणाम करता हूँ — जो जपाकुसुम के समान तेजस्वी, कश्यप वंशज, अंधकार और पापों के नाश करने वाले हैं।
9. नमः सूर्याय शुद्धाय ज्योतिषां पतये नमः।
नमः पूज्याय पुण्याय मार्ताण्डाय नमो नमः॥
अर्थ : हे शुद्ध स्वरूप, ज्योतियों के अधिपति, पूज्य और पुण्य स्वरूप सूर्य! बार-बार नमस्कार हे मार्ताण्ड!
10. ब्रह्ममूर्ते च यो भक्त्या पठेच्छ्लोकमिमं शुभम्।
आरोग्यं धनमायुष्यं प्राप्नुयाच्छत्रुसूदनः॥
अर्थ : जो कोई भी ब्रह्ममुहूर्त में इस शुभ स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करता है, वह सम्पूर्ण स्वास्थ्य, धन, दीर्घायु और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।
11. अहं प्रभाते वन्दे तमोरिं दिनकरम् आत्मनः।
रात्रौ चन्द्रमसं चैव पूजये चन्द्रधारिणम्॥
अर्थ : मैं प्रातःकाल सूर्य देव को नमन करता हूँ, जो आत्मा में प्रकाश लाते हैं, और रात्रि में मैं चन्द्र को पूजता हूँ, जो चांदनी की वर्दी ओढ़ते हैं।
12. भगवन्कुरु तेजस्तस्य यतोऽसौ भवति गतिः।
जनमरणमोक्षं चैव या देवतन्तुसंस्था॥
अर्थ : भगवान, उस सूर्य की विभा से जो तेज निकलता है, उसी से हमारा नागवार कर्म, जन्म, मृत्यु, और मोक्ष संबंधी ज्ञान मजबूत होता है।
13. तैश्चैव प्रक्षालयेन्नितं कालयुक्तमेव च।
यस्ततो ह्यल्पः स्मरन् देव देवेशं पुरुषोत्तमम्॥
अर्थ : जो व्यक्ति रोज समयानुसार सूर्य के प्रक्षालन कर्मों को करता है, और उसके तुरंत बाद प्रभु पुरुषोत्तम का स्मरण करता है, वह सर्वदा श्रेष्ठ बन जाता है।
14. आदित्यहृदय पूजां च ये करिष्यन्ति श्रद्धया।
अगस्त्यो ब्रवीत्तान् सर्वान्विजयं भोगं च देहि ते॥
अर्थ : जो श्रद्धा से आदित्य हृदय की स्तुति करेगा, अगस्त्यजी उन्हें बोले कि — मैं तुम्हें विजय भी दूँगा और जीवन के सुख भी देगा।
15. अथाष्टोत्तरशतं नाम्नां यदि तदप्यप्यथा।
जन्यतामिह भगवान्पापनाशोत्सस्य प्रभो॥
अर्थ : और यदि 108 नामों के अतिरिक्त भी कोई जाप करता है, तो हे प्रभु, उसके पाप तो अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं।
16. अव्यक्तं व्यक्तितो राम प्रतक्षाच्चापरम्परः।
तेजस्तर्हि मुक्तोऽब्रवीद्रामं मनुना सुधीना॥
अर्थ : श्रीराम ने प्रश्न किया – हे अगस्त्यजी! जो तेज जो तुझमें से व्यष्टि से अव्यक्त होकर निराकार शक्ति में नजर आता है – वह कैसे आगे से प्रकट रूप लेता है?
इस पर मुनियों ने ज्ञानियों द्वारा राम को समझाया। (यह श्लोक एक संवाद की ओर संकेत करता है।)
17. एवमुक्त्वा तु महातेजा निर्मृगतामिव मानवा:।
यातायता सच् चक्रेऽगस्त्यो ब्रुवन्भवतीशवरम्॥
अर्थ : जब महान तेजस्वी अगस्त्य ने उपर्युक्त वैदिक संवाद से राम को जानकारियाँ दी, तब उन्होंने दिव्य तेज के साथ सूर्य का गान आरंभ किया।
स्तोत्र का समापन और फल (18–31)
18. आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वष्ट्रुविनाशनं तथा।
जयावहं जपेन्नित्यं अक्षय्यं परमं शिवम्॥
अर्थ : यह पुनः कहा गया — आदित्य हृदय अत्यंत पुण्य और शत्रु-विनाशक है; इसका नियमित जाप अक्षय शुभ फल देता है।
19. सर्वमङ्गलं माङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनं आयुरारोग्यमैश्वर्यम्॥
अर्थ : यह स्तोत्र सम्पूर्ण मंगल का मूल है — सभी पापों का नाश करता है, चिंता और दुख को दूर करता है, और आयु, स्वास्थ्य व ऐश्वर्य देता है।
20. नमः सूर्याय शान्ताय सर्वरोगनिवारिणे।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि मे जगतां पते॥
अर्थ : हे शांत और रोगनाशक सूर्य! हे जगताधिपति! मुझे दीर्घायु, स्वास्थ्य और ऐश्वर्य दें।
21. आदित्यं क्षीणपाप्मानं ध्यात्वा हृदि नहि संस्थितम्।
जपेन्नित्यं नाम्नां सातशतीं प्रियमष्टोत्तरशतं॥
अर्थ : जो व्यक्ति आदित्य देव को हृदय में ध्याता है और श्रद्धा से 700 या कम से कम 108 बार जाप करता है, वह उन्हें अत्यंत प्रिय है।
22. जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥
अर्थ : जपाकुसुम की तरह तेजस्वी, पापरहित करने वाले, अंधकार को नष्ट करने वाले दिवाकर को मैं प्रणाम करता हूँ।
23. नमः सूर्याय शुद्धाय ज्योतिषां पतये नमः।
नमः पूज्याय पुण्याय मार्ताण्डाय नमो नमः॥
अर्थ : हे शुद्ध, पूज्य और पुण्य स्वरूप मार्तण्ड! बारंबार नमः।
24. ब्रह्ममूर्ते च यो भक्त्या पठेच्छ्लोकमिमं शुभम्।
आरोग्यं धनमायुष्यं प्राप्नुयाच्छत्रुसूदनः॥
अर्थ : जो ब्रह्ममुहूर्त में श्रद्धा से पढ़ता है, वे स्वास्थ्य, धन, आयु प्राप्त करते हैं, और शत्रुओं पर विजय पाते हैं।
25. अथाष्टोत्तरशतं नाम्नां यदि तदप्यप्यथा।
जन्यतामिह भगवान्पापनाशोत्सस्य प्रभो॥
अर्थ : यदि 108 नामों के अतिरिक्त और जाप करता है, तो उसका पाप स्वतः नष्ट हो जाता है।
26. समग्रमपठन्नित्यं त्रिसंध्यं श्रद्धयान्वितः।
समरे विजयं प्राप्य राज्यं चाप्यवशत्पुनः॥
अर्थ : जो नियमित श्रद्धा से त्रिकाल — प्रातः, दोपहर, शाम — में यह पाठ करता है, वह युद्ध में विजय पाता है और सत्ता/राज्य भी प्राप्त करता है।
27. नन्त्राप्यपठन्मात्रेऽप्येवं चक्रे रणं सभाम्।
मोक्षं चाप्युवाप्नोति राम भक्तिर्दिशती सध्॥
अर्थ : चाहे पाठ मात्र किया जाए — फिर भी वह युद्ध में विजयी होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है। श्रीराम भक्तों के लिए यह मार्ग दिखाता है जीवन का सत्य।
28. इत्थं रावणासुरसेनयोरभीषणसंग्रामे।
रामेणाभ्युदितः तेजस्तमः शमयामास धर्मात्॥
अर्थ : इस प्रकार, उस भीषण युद्ध में रावण और उसके दूतों के साथ, राम द्वारा यह तेज स्तोत्र पढ़ने से अंधकार शांत हुआ और धर्म की विजय हुई।
29. एवमुक्त्वा ततो मुनिर्गच्छद्रामं मनुजेश्वरः।
कर्त्तव्यं त्वहं तदशेषं गृह्णीष्यामिवोदाम्बरः॥
अर्थ : ऐसे सब कहकर मुनि अगस्त्य राम को छोड़कर चले गए — और राम ने आठ भुजाओं वाले कवच की तरह उस स्तोत्र को अपने अंदर आत्मसात किया।
30. समस्तोपदेशान्वत्सां तस्मात् पठनं परमं हितम्।
श्रद्धयान्यतचापद्येते परित्याज्यते द्विषाम्॥
अर्थ : जो सतत श्रद्धा के साथ इस उपदेशित स्तोत्र का पाठ करता है, वह न केवल हित और पुण्य पाता है — बल्कि द्वेष की बाधा भी दूर हो जाती है।
31. ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
अर्थ : यह अंतिम शांति मंत्र है ( ‘ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः’) — यह योग, मन, आत्मा और सम्पूर्ण जगत के लिए शांति की मङ्गल कामना करता है।
Aaditya Hridaya Stotra क्या है ?
आदित्य हृदय स्तोत्र सूर्य देव को समर्पित किया गया है हिन्दू धर्म में मान्यताओं के अनुसार आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सूर्य देव को प्रश्न करने के लिए किया जाता है आदित्य हृदय स्तोत्र का वर्णन आपको वाल्मीकि जी के द्वारा लिखी गई वाल्मीकि रामायण में मिलता है।
वाल्मीकि जी के रामायण से हमे पता चलता है कि आदित्य हृदय स्तोत्र को पहली बार ऋषि अगस्त्य ने राम भगवान को बताया और सिखाया था वो भी तब जब राम भगवान रावण का वध कर रावण पर विजय हुए थे हिन्दू धर्म के अनुसार यदि आप आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने मात्र से ही आपके सारे पाप , कष्ट और दुख दूर हो जाते है।
आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ की विधि
अगर आप जीवन में मानसिक बल, आत्मविश्वास, स्वास्थ्य या किसी संकट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ अत्यंत लाभकारी है Aditya Hridaya Stotra in Hindi मे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ इस स्तोत्र के पाठ की वह विधि, जिसे मैंने स्वयं अनुभवी साधकों से सीखा है और वर्षों से अपनाया है।
1. पाठ का समय और स्थान
सुबह का समय, जब सूरज की पहली किरणें धरती पर पड़ रही हों, उस वक़्त का कोई जवाब नहीं, अगर संभव हो तो सूर्योदय के समय खुले आसमान के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें, आपके चारों ओर शांति हो, मोबाइल या ध्यान भटकाने वाली कोई चीज़ न हो।
2. स्नान और शुद्ध वस्त्र
पाठ से पहले स्नान करे, मन और तन — दोनों की स्वच्छता ज़रूरी है, सफेद या पीले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है, यह रंग सूर्यदेव की ऊर्जा से मेल खाते हैं और साधना में सहजता लाते हैं।
3. संकल्प लेना
मन में एक छोटा सा संकल्प लें, संकल्प से साधना को दिशा मिलती है जैसे:
“मैं यह पाठ भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त करने हेतु, अपने जीवन में स्वास्थ्य, आत्मबल और सफलता के लिए कर रहा/रही हूँ।”
4. सूर्य को अर्घ्य देना (अगर संभव हो तो)
तांबे के लोटे में स्वच्छ जल लें, उसमें थोड़ा लाल फूल, चावल (अक्षत), हल्का सा गुड़ या शक्कर और कुमकुम मिलाएं। फिर सूरज की ओर मुख करके “ॐ सूर्याय नमः” कहते हुए तीन बार अर्घ्य दें।
5. पाठ की तैयारी और स्थिति
अब आसन पर बैठें (कुशासन या चटाई सर्वोत्तम)। रीढ़ सीधी रखें और कुछ क्षण आँखें बंद कर श्वास को शांत करें। जब भीतर शांति आ जाए, तभी पाठ शुरू करें।
6. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ
- अब पूरे श्रद्धा भाव से आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- हर एक श्लोक को ध्यान से पढ़ें, ऐसे जैसे आप भगवान सूर्य से संवाद कर रहे हों।
- चाहें तो श्लोकों का अर्थ भी समझते चलें — इससे अनुभव और भी गहरा होता है।
7. पाठ के बाद
- अंतिम श्लोक के बाद हाथ जोड़कर भगवान सूर्य को नमस्कार करें।
- आँखें बंद कर कुछ क्षण उनके तेज और ऊर्जा को महसूस करें।
- फिर बोलें:
“ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।”
8. नियमितता का महत्व
- इसे रविवार के दिन विशेष रूप से पढ़ना शुभ माना गया है।
- लेकिन यदि संभव हो, तो प्रतिदिन या सप्ताह में तीन बार भी कर सकते हैं।
- विशेष कार्य, बीमारी, परीक्षा या मानसिक तनाव के समय 11 या 21 दिनों तक लगातार इसका पाठ अत्यंत फलदायी रहता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ से लाभ
Aditya Hridaya Stotra in Hindi मे मैं आपको “आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ से होने वाले लाभ” को एकदम मानवीय अनुभव, आस्था और आत्मीयता से समझाने की कोशिश कर रहा हूँ , जैसे कोई अनुभवी साधक या परिवार का बुज़ुर्ग अपने अनुभव से कह रहा हो
1. आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि
- जब आप हर दिन आदित्य देव का स्मरण करते हैं, तो उनके तेज का अंश आपके भीतर उतरने लगता है। यह कोई कल्पना नहीं बल्कि अनुभूत सत्य है।
- जो व्यक्ति पहले ज़रा सी बात में घबरा जाता था, वह धीरे-धीरे भीतर से मजबूत महसूस करने लगता है। एक तरह का अडिग आत्मविश्वास आ जाता है जैसे खुद में ही एक शक्तिशाली स्रोत हो।
2. मानसिक शांति और नकारात्मक विचारों से मुक्ति
- हमारे विचार, हमारा मन सूरज की रोशनी की तरह अगर स्पष्ट और प्रकाशमान हो जाए तो जीवन सरल हो जाता है।
- इस स्तोत्र के नियमित पाठ से बेचैनी, डर, चिंता और अवसाद जैसे मानसिक विकार दूर होने लगते हैं यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि शब्दों और श्रद्धा से उत्पन्न ऊर्जा का परिणाम है।
3. शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार
- सूर्य को आयुर्वेद में भी जीवन और आरोग्य का मूल स्रोत माना गया है।
- इस स्तोत्र का पाठ करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा संचार होता है विशेषकर हृदय, नेत्र, पाचन और त्वचा संबंधी रोगों में लाभ होता है कई लोगों ने बताया है कि वे वर्षों से सुबह इसका पाठ करते हैं और डॉक्टर के पास जाना लगभग बंद हो गया है।
4. नजर दोष, बुरी ऊर्जा और बाधाओं से रक्षा
- जब जीवन में बिना कारण बार-बार रुकावटें आने लगें, काम अटकने लगें, या कोई विशेष ‘नजर’ लगने का अनुभव हो तब इस स्तोत्र का पाठ ढाल बन जाता है।
- यह आपकी ऊर्जा रक्षा कवच की तरह काम करता है, जैसे प्रभु का हाथ सिर पर हो।
5. कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाने वाला
- रामायण में यह स्तोत्र भगवान राम को युद्ध भूमि में तब सुनाया गया था, जब रावण के सामने उनका आत्मबल कमजोर पड़ रहा था।
- यह स्तोत्र उन क्षणों में भी व्यक्ति को साहस देता है, जब सब ओर अंधेरा हो और कोई राह न सूझे।
- कई साधकों का अनुभव है कि यह स्तोत्र पढ़ते-पढ़ते असंभव लगने वाला काम भी सहज हो गया।
6. बुद्धि, स्मरण शक्ति के लिए लाभदायक
- बच्चों और विद्यार्थियों को अगर यह पाठ कराया जाए, तो उनकी एकाग्रता, स्मरण शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है परीक्षा के समय जो घबराहट होती है, वह भी कम हो जाती है।
7. भीतर से जुड़े होने का एहसास
- सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह पाठ आपको आपसे जोड़ता है।
- आप सिर्फ एक नाम, शरीर या काम करने वाली मशीन नहीं हैं , आप ऊर्जा हैं, प्रकाश हैं।
- यह पाठ आपको यह याद दिलाता है कि बाहर जितना सूरज चमकता है, वैसा ही तेज आपके अंदर भी है।
8. लोगों के अनुभवों से सीखा गया
- कुछ लोगों ने इससे डिप्रेशन में राहत पाई।
- कई लोगों ने बताया कि घरेलू क्लेश कम हुए।
- कुछ साधकों का मानना है कि यह संकट काल में आश्चर्यजनक रूप से मदद करता है।
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निष्कर्ष
Aditya Hridaya Stotra in Hindi के सभी श्लोक को पढ़कर आपको एक आनंद की अनुभूति हो रही होगी इसी तरह से रोज इसका पाठ करने से सारे दुःख दर्द अवं तकलीफे जिंदगी से गायब सी हो जाती है तो यदि आपका कोई दोस्त जिसके जीवन में परेशानिया है तो उसको या पोस्ट जरूर शेयर करे।
FAQ : Aditya Hridaya Stotra in Hindi
Aditya Hridaya Stotra की रचना किसने की थी?
इस स्तोत्र का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में आता है। इसे महर्षि अगस्त्य ने भगवान राम को बताया था। मूल रामायण के श्लोकों के रूप में ही यह रचना है।
इस स्तोत्र का पाठ कब और क्यों करना चाहिए?
- सूर्योदय के समय, स्नान के बाद, पूर्व दिशा की ओर मुख करके इसका पाठ करना श्रेष्ठ माना जाता है।
- यह मानसिक तनाव दूर करता है, आत्मबल बढ़ाता है, शत्रुओं पर विजय दिलाता है और कार्यसिद्धि में सहायक होता है।
- खासकर जब व्यक्ति संघर्ष या संकट में हो, तब यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
Aditya Hridaya Stotra कितने श्लोकों का होता है?
इस स्तोत्र में कुल 31 श्लोक होते हैं। प्रत्येक श्लोक का विशिष्ट अर्थ और प्रभाव होता है। यह सभी श्लोक संस्कृत में हैं, जिनका हिंदी अर्थ सहित पाठ अधिक लाभकारी होता है।